हर जनम में.... हर जनम में उसी की चाहत थे; हम किसी और की अमानत थे; उसकी आँखों में झिलमिलाती हुई; हम ग़ज़ल की कोई अलामत थे; तेरी चादर में तन समेट लिया; हम कहाँ के दराज़क़ामत थे; जैसे जंगल में आग लग जाये; हम कभी इतने ख़ूबसूरत थे; पास रहकर भी दूर-दूर रहे; हम नये दौर की मोहब्बत थे; इस ख़ुशी में मुझे ख़याल आया; ग़म के दिन कितने ख़ूबसूरत थे दिन में इन जुगनुओं से क्या लेना; ये दिये रात की ज़रूरत थे।
कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है,
ये दीया अपने ही अँधेरे में घुट जाता है।
सब समझते हैं वही रात की किस्मत होगा,
जो सितारा बुलंदी पर नजर आता है।
मैं इसी खोज में बढ़ता ही चला जाता हूँ,
किसका आँचल है जो पर्बतों पर लहराता है।
मेरी आँखों में एक बादल का टुकड़ा शायद,
कोई मौसम हो सरे-शाम बरस जाता है।
दे तसल्ली कोई तो आँख छलक उठती है,
कोई समझाए तो दिल और भी भर आता है।
कोई बिजली इन ख़राबों में घटा रौशन करे; ऐ अँधेरी बस्तियो! तुमको खुदा रौशन करे; नन्हें होंठों पर खिलें मासूम लफ़्ज़ों के गुलाब; और माथे पर कोई हर्फ़-ए-दुआ रौशन करे; ज़र्द चेहरों पर भी चमके सुर्ख जज़्बों की धनक; साँवले हाथों को भी रंग-ए-हिना रौशन करे; एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए; एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे; ख़ैर अगर तुम से न जल पाएँ वफाओं के चिराग; तुम बुझाना मत जो कोई दूसरा रौशन करे।
तेरा चेहरा सुब्ह का तारा लगता है; सुब्ह का तारा कितना प्यारा लगता है; तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है; तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है; रात हमारे साथ तू जागा करता है; चाँद बता तू कौन हमारा लगता है; किस को खबर ये कितनी कयामत ढाता है; ये लड़का जो इतना बेचारा लगता है; तितली चमन में फूल से लिपटी रहती है; फिर भी चमन में फूल कँवारा लगता है; 'कैफ' वो कल का 'कैफ' कहाँ है आज मियाँ; ये तो कोई वक्त का मारा लगता है।
gazal hindi shayari
नज़र फ़रेब-ए-कज़ा खा गई तो क्या होगा; हयात मौत से टकरा गई तो क्या होगा; नई सहर के बहुत लोग मुंतज़िर हैं मगर; नई सहर भी कजला गई तो क्या होगा; न रहनुमाओं की मजलिस में ले चलो मुझको; मैं बे-अदब हूँ हँसी आ गई तो क्या होगा; ग़म-ए-हयात से बेशक़ है ख़ुदकुशी आसाँ; मगर जो मौत भी शर्मा गई तो क्या होगा; शबाब-ए-लाला-ओ-गुल को पुकारनेवालों; ख़िज़ाँ-सिरिश्त बहार आ गई तो क्या होगा; ख़ुशी छीनी है तो ग़म का भी ऐतमाद न कर; जो रूह ग़म से भी उकता गई तो क्या होगा।
तेरे कमाल की हद... तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझा; उसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझा; कभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आराम; ग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझा; पयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदा; कई तरह इसी मतलब को नामाबर समझा; न खुल सका तेरी बातों का एक से मतलब; मगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा।
मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना; तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना; तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई; तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना; शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लो; अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना; तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते; पुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जाना; इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का; तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना; अगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पी; तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना।
यूँ तो यारो यूँ तो यारो थकान भारी है; फिर भी ख़ुद की तलाश जारी है; हम में हर इक में इक परिन्दा है; और हर इक में इक शिकारी है; लोग दुनिया में दुख से मरते हैं; और दुख से हमारी यारी है; कितने ख़ुश हैं, उन्हें कहाँ मालूम; हमने क़स्दन ये बाज़ी हारी है; दिल को बेमोल बेच आए हम; अपनी-अपनी दुकानदारी है।
पत्नी बोली... क्यों जी, दीपावली का सारा सामान आप लाये; पर पटाखा एक भी न लाये; मैंने कहा, तुम किस पटाखे से कम हो; सच कहूँ तो समूचा डायनामाइट बम हो; अपनी गलती हमेशा मुझ पर जड़ती हो; सफाई में जब भी मैं कुछ कहूँ मुझ पर फट पड़ती हो।
मंजिल ... पहर दिन सप्ताह महीने साल; मत देखों मंजिल की चाह में; ये देखों कि कितना चले हो; और उसमें भी कितना भटके हो राह में; यदि यह भटकाव कुछ कम हो जाए; और तेजी ला दो चाल में; तो बहुत मुमकिन है कि कामयाबी; हांसिल हो जाए नए साल में।
एक अजीब सी हालत है... एक अजीब सी हालत हैं तेरे जाने के बाद; भूख ही नहीं लगती खाना खाने के बाद; मेरे पास 8 समोसे थे जो मैंने खा लिए; 1 तेरे आने से पहले 7 तेरे जाने के बाद; नींद ही नहीं आती मुझे सोने के बाद; नज़र कुछ नहीं आता आँखे बंद होने के बाद; डॉक्टर से पूछा इसका इलाज़ दी 4 टैबलेट; बोला खा लेना 2 जागने से पहले 2 सोने के बाद।
तुम न आये एक दिन... तुम न आये एक दिन का वादा कर दो दिन तलक; हम पड़े तड़पा किये दो-दो पहर दो दिन तलक; दर्द-ए-दिल अपना सुनाता हूँ कभी जो एक दिन; रहता है उस नाज़नीं को दर्द-ए-सर दो दिन तलक; देखते हैं ख़्वाब में जिस दिन किस की चश्म-ए-मस्त; रहते हैं हम दो जहाँ से बेख़बर दो दिन तलक; गर यक़ीं हो ये हमें आयेगा तू दो दिन के बाद; तो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलक; क्या सबब क्या वास्ता क्या काम था बतलाइये; घर से जो निकले न अपने तुम "ज़फ़र" दो दिन तलक।
love ghazal in hindi
तेरे कमाल की हद तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझा; उसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझा; कभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आराम; ग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझा; पयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदा; कई तरह इसी मतलब को नामाबर समझा; न खुल सका तेरी बातों का एक से मतलब; मगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा।
एक क़तरा मलाल भी बोया नहीं गया; वो खौफ था के लोगों से रोया नहीं गया; यह सच है के तेरी भी नींदें उजड़ गयीं; तुझ से बिछड़ के हम से भी सोया नहीं गया; उस रात तू भी पहले सा अपना नहीं लगा; उस रात खुल के मुझसे भी रोया नहीं गया; दामन है ख़ुश्क आँख भी चुप चाप है बहुत; लड़ियों में आंसुओं को पिरोया नहीं गया; अलफ़ाज़ तल्ख़ बात का अंदाज़ सर्द है; पिछला मलाल आज भी गोया नहीं गया; अब भी कहीं कहीं पे है कालख लगी हुई; रंजिश का दाग़ ठीक से धोया नहीं गया।
एक अजीब सी हालत है... एक अजीब सी हालत हैं तेरे जाने के बाद; भूख ही नहीं लगती खाना खाने के बाद; मेरे पास 8 समोसे थे जो मैंने खा लिए; 1 तेरे आने से पहले 7 तेरे जाने के बाद; नींद ही नहीं आती मुझे सोने के बाद; नज़र कुछ नहीं आता आँखे बंद होने के बाद; डॉक्टर से पूछा इसका इलाज़ दी 4 टैबलेट; बोला खा लेना 2 जागने से पहले 2 सोने के बाद।
तेरे कमाल की हद तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझा; उसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझा; कभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आराम; ग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझा; पयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदा; कई तरह इसी मतलब को नामाबर समझा; न खुल सका तेरी बातों का एक से मतलब; मगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा।
वो जो वह एक अक्स है सहमा हुआ डरा हुआ; देखा है उसने गौर से सूरज को डूबता हुआ; तकता हु कितनी देर से दरिया को मैं करीब से; रिश्ता हरेक ख़त्म क्या पानी से प्यास का हुआ; होठो से आगे का सफर बेहतर है मुल्तवी करे; वो भी है कुछ निढाल सा मैं भी हु कुछ थका हुआ; कल एक बरहना शाख से पागल हवा लिपट गयी; देखा था खुद ये सानिहा, लगता है जो सुना हुआ; पैरो के निचे से मेरे कब की जमीं निकल गयी; जीना है और या नहीं अब तक न फैसला हुआ।
heart touching ghazal in hindi
झूठा निकला क़रार तेरा; अब किसको है ऐतबार तेरा; दिल में सौ लाख चुटकियाँ लीं; देखा बस हम ने प्यार तेरा; दम नाक में आ रहा था अपने; था रात ये इंतिज़ार तेरा; कर ज़बर जहाँ तलक़ तू चाहे; मेरा क्या, इख्तियार तेरा; लिपटूँ हूँ गले से आप अपने; समझूँ कि है किनार तेरा; 'इंशा' से मत रूठ, खफा हो; है बंदा जानिसार तेरा।
कभी मुझ को साथ लेकर, कभी मेरे साथ चल के; वो बदल गए अचानक, मेरी ज़िन्दगी बदल के; हुए जिस पे मेहरबाँ, तुम कोई ख़ुशनसीब होगा; मेरी हसरतें तो निकलीं, मेरे आँसूओं में ढल के; तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के, क़ुर्बाँ दिल-ए-ज़ार ढूँढता है; वही चम्पई उजाले, वही सुरमई धुंधल के; कोई फूल बन गया है, कोई चाँद कोई तारा; जो चिराग़ बुझ गए हैं, तेरी अंजुमन में जल के; मेरे दोस्तो ख़ुदारा, मेरे साथ तुम भी ढूँढो; वो यहीं कहीं छुपे हैं, मेरे ग़म का रुख़ बदल के; तेरी बेझिझक हँसी से, न किसी का दिल हो मैला; ये नगर है आईनों का, यहाँ साँस ले संभल के।
नींद की ओस से... नींद की ओस से पलकों को भिगोये कैसे; जागना जिसका मुकद्दर हो वो सोये कैसे; रेत दामन में हो या दश्त में बस रेत ही है; रेत में फस्ल-ए-तमन्ना कोई बोये कैसे; ये तो अच्छा है कोई पूछने वाला न रहा; कैसे कुछ लोग मिले थे हमें खोये कैसे; रूह का बोझ तो उठता नहीं दीवाने से; जिस्म का बोझ मगर देखिये ढोये कैसे; वरना सैलाब बहा ले गया होगा सब कुछ; आँख की ज़ब्त की ताकीद है रोये कैसे।
कब याद मे तेरा साथ नहीं, कब हाथ में तेरा हाथ नहीं; साद शुक्र की अपनी रातो में अब हिज्र की कोई रात नहीं; मुश्किल है अगर हालत वह, दिल बेच आए, जा दे आए; दिल वालो कूचा-ए-जाना में, क्या ऐसे भी हालात नहीं; जिस धज से कोई मकतल में गया, वो शान सलामत रहती है; ये जान तो आनी-जानी है, इस जान की तो कोई बात नहीं; मैदान-ए-वफ़ा दरबार नहीं, या नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ; आशिक तो किसी का नाम नहीं, कुछ इश्क किसी की जात नहीं; गर बाज़ी इश्क की बाज़ी है, ओ चाहो लगा दो दर कैसा; गर जीत गए तो क्या कहने, हारे भी तो बाज़ी मात नहीं।
तेरी हर बात मोहब्बत में... तेरी हर बात मोहब्बत में गंवारा करके; दिल के बाज़ार में बैठे हैँ ख़सारा करके; एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे; वो अलग हट गया आँधी को इशारा करके; मुन्तज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे; चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा करके; मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भंवर है जिसकी; तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
देखा तो था यूं ही... देखा तो था यूं ही किसी ग़फ़लत-शिआर ने; दीवाना कर दिया दिल-ए-बेइख़्तियार ने; ऐ आरज़ू के धुंधले ख्वाबों जवाब दो; फिर किसकी याद आई थी मुझको पुकारने; तुमको ख़बर नहीं मगर इक सादालौह को; बर्बाद कर दिया तेरे दो दिन के प्यार ने; मैं और तुमसे तर्क-ए-मोहब्बत की आरज़ू; दीवाना कर दिया है ग़म-ए-रोज़गार ने; अब ऐ दिल-ए-तबाह तेरा क्या ख्याल है; हम तो चले थे काकुल-ए-गेती सँवारने।
romantic ghazal in hindi
बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये; कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये; करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला; यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये; मगर किसी ने हमें हमसफ़र नही जाना; ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये; अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिए; ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये; गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नहीं हारा; गिरफ़्ता दिल है मगर हौंसले भी अब के गये; तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो 'फ़राज़'; इन आँधियों में तो प्यारे चिराग सब के गये।
भड़का रहे हैं आग... भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागार से हम; ख़ामोश क्या रहेंगे ज़माने के डर से हम; कुछ और बड़ गए अंधेरे तो क्या हुआ; मायूस तो नहीं हैं तुलु-ए-सहर से हम; ले दे के अपने पास फ़क़त एक नज़र तो है; क्यों देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके; कुछ ख़ार कम कर गए गुज़रे जिधर से हम।
फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया; अच्छा भला इक शहर वीरान हो कर रह गया; हर नक्श बतल हो गया अब के दयार-ए-हिज्र में; इक ज़ख्म गुज़रे वक्त की पहचान हो कर रह गया; रुत ने मेरे चारों तरफ खींचें हिसार-ए-बाम-ओ-दर; यह शहर फिर मेरे लिए ज़ान्दान हो कर रह गया; कुछ दिन मुझे आवाज़ दी लोगों ने उस के नाम से; फिर शहर भर में वो मेरी पहचान हो कर रह गया; इक ख्वाब हो कर रह गई गुलशन से अपनी निस्बतें; दिल रेज़ा रेज़ा कांच का गुलदान हो कर रह गया; ख्वाहिश तो थी "साजिद" मुझे तशीर-ए-मेहर-ओ-माह की; लेकिन फ़क़त मैं साहिब-ए-दीवान हो कर रह गया।
ज़रा-सी देर में... ज़रा-सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा; ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा; न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं; हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा; सफ़ीना हो के हो पत्थर, हैं हम अंज़ाम से वाक़िफ़; तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा; समन्दर के सफर में किस्मतें पहलू बदलती हैं; अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा; मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको; किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा।
सीने में जलन... सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान-सा क्यों है; इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यों है; दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे; पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान-सा क्यों है; तन्हाई की ये कौन-सी मंज़िल है रफ़ीक़ो; ता-हद्द-ए-नज़र एक बियाबान-सा क्यों है; हमने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की; वो ज़ूद-ए-पशेमान, परेशान-सा क्यों है; क्या कोई नई बात नज़र आती है हममें; आईना हमें देख के हैरान-सा क्यों है।
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हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे हैं मुझे; ये ज़िन्दगी तो कोई बद-दुआ लगे है मुझे; जो आँसू में कभी रात भीग जाती है; बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे; मैं सो भी जाऊँ तो मेरी बंद आँखों में; तमाम रात कोई झाँकता लगे है मुझे; मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ; वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे; मैं सोचता था कि लौटूँगा अजनबी की तरह; ये मेरा गाँव तो पहचाना सा लगे है मुझे; बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद; हर एक फ़र्द कोई सानेहा लगे है मुझे।
भड़का रहे हैं आग... भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागार से हम; ख़ामोश क्या रहेंगे ज़माने के डर से हम; कुछ और बड़ गए अंधेरे तो क्या हुआ; मायूस तो नहीं हैं तुलु-ए-सहर से हम; ले दे के अपने पास फ़क़त एक नज़र तो है; क्यों देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके; कुछ ख़ार कम कर गए गुज़रे जिधर से हम।
इस अहद में इलाही... इस अहद में इलाही मोहब्बत को क्या हुआ; छोड़ा वफ़ा को उन्ने मुरव्वत को क्या हुआ; उम्मीदवार वादा-ए-दीदार मर चले; आते ही आते यारों क़यामत को क्या हुआ; बख्शिश ने मुझ को अब्र-ए-करम की किया ख़िजल; ए चश्म-ए-जोश अश्क-ए-नदामत को क्या हुआ; जाता है यार तेग़ बकफ़ ग़ैर की तरफ़; ए कुश्ता-ए-सितम तेरी ग़ैरत को क्या हुआ।
कोई चारा नहीं कोई चारा नहीं दुआ के सिवा; कोई सुनता नहीं खुदा के सिवा; मुझसे क्या हो सका वफ़ा के सिवा; मुझको मिलता भी क्या सज़ा के सिवा; कोई... बरसरे-साहिले मुकाम यहां; कौन उभरा है नाखुदा के सिवा; कोई... दिल सभी कुछ ज़ुबान पर लाया; इक फ़क़त अर्ज़े-मुद्दा के सिवा; कोई.
तोड़ना टूटे हुए दिल का तोड़ना टूटे हुए दिल का बुरा होता है; जिसका कोई नहीं उसका तो खुद होता है; तोड़ना... मांग कर तुमसे खुशी लूं मुझे मंज़ूर नहीं; किसका मांगी हुई दौलत से भला होता है; तोडना... लोग नाहक किसी मजबूर को कहते हैं बुरा; आदमी अच्छे हैं पर वक़्त बुरा होता है; तोड़ना... क्यों मुनीर अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा; जितना तक़दीर में लिखा है अदा होता है; तोड़ना.
चैन मिल जाए..... कम नहीं मेरी ज़िन्दगी के लिए; चैन मिल जाए दो घडी के लिए; दिले-ज़ार कौन है तेरा; क्यों तड़पता है यूं किसी के लिए; चैन मिल जाए... कितने सामान कर लिए पैदा; इतनी छोटी सी ज़िन्दगी के लिए; चैन मिल जाए.... ऐसा फ़ैयाज़ ग़म ने घेरा है; लब तरस ही गए हंसी के लिए; चैन मिल जाए..
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तेरे ही क़दमों में तेरे ही क़दमों में मरना भी अपना जीना भी; कि तेरा प्यार है दरिया भी और सफ़ीना भी; मेरी नज़र में सभी आदमी बराबर हैं; मेरे लिए जो है काशी वही मदीना भी; तेरी निगाह को इसकी ख़बर नहीं शायद; कि टूट जाता है दिल-सा कोई नगीना भी; बस एक दर्द की मंज़िल है और एक मैं हूँ; कहूँ कि 'तूर'! भला क्या है मेरा जीना भी।
तप कर गमों की आग में तप कर गमों की आग में कुंदन बने हैं हम; खुशबू उड़ा रहा दिल चंदन से सने हैं हम; रब का पयाम ले कर अंबर पे छा गए; बिखरा रहे खुशी जग बादल घने हैं हम; सच की पकड़ के बाँह ही चलते रहे सदा; कितने बने रकीब हैं फ़िर भी तने हैं हम; छुप कर करो न घात रे बाली नहीं हूँ मैं; हमला करो कि अस्त्र बिना सामने हैं हम; खोये किसी की याद में मदहोश है किया; छेड़ो न साज़ दिल के हुए अनमने हैं हम।
बेनाम सा यह दर्द बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाता; जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नही जाता; सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें; क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यूं नही जाता; वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ मैं; जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जाता; मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा; जाते है जिधर सब मैं उधर क्यूं नही जाता; वो नाम जो बरसों से न चेहरा है न बदन है; वो ख्वाब अगर है तो बिखर क्यूं नही जाता; जो बीत गया है वो गुज़र क्यूं नही जाता; बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाता।